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शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

हास्य व्यंग कविता -: मजा ही कुछ और है, पैसे वालों को गाली बकने का, मुफ्त में मूँगफली चखने का

मजा ही कुछ और है, पैसे वालों को गाली बकने का, मुफ्त में मूंगफली के चखने का


मजा ही कुछ और है...
दांतों से नाखून काटने का, छोटों को जबरदस्ती डांटने का,
पैसे वालों को गाली बकने का, मूंगफली के ठेले से
कुछ मूंगफली चखने का, कुर्सी पर बैठकर
कान में पैन डालने का और सरकारी बस की सीट से
स्पंज निकालने का, मजा ही कुछ और है...
चोरी से फल-फूल तोड़ने का
खराब ट्यूब लाइट और मटके फोड़ने का,
पड़ोसन को घूर-घूर कर देखने का, अपना कचरा दूसरों के घर के सामने फेंकने का,
बाथरूम में बेसुरा गाने का,
और थूक से टिकट चिपकाने का, मजा ही कुछ और है...
ऑफिस में देर से आने का, फाइल को जबरदस्ती दबाने का,
चाट वाले से फोकट में चटनी डलवाने का,
बारात में प्रेस किए हुए कपड़ों को फिर से प्रेस करवाने का,
सुसराल में साले से पान मंगवाने का, और साली की पीठ पर
घोल जमाने का, मजा ही कुछ और है...
पंगत में एक सब्जी के लिए दो दोने लगाने का,
अपना सबसे फटा नोट आरती में चढ़ाने का,
दूसरों के मोबाइल से चिपकने का, पान और गुटखे को
इधर-उधर पिचकने का,कमजोर से बेमतलब लड़ने का,
और नींद न आने पर पत्नी को जगाने का , मजा ही कुछ और है...
(कवि ओम व्यास की कविता ‘मजा ही कुछ और है’ का अंश)

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