तुझको पराई क्या पड़ी
बेटा है तू शरीफ का, मत मुस्कुरा के चल,
टाँगें हैं तेरी बेंत-सी, इनको टिका के चल।
सड़कों की भीड़-भीड़ में,
कोहनी बचा के चल
कालिज के कार्टून, तू नजरें झुका के चल।
लड़की मिले जो राह में, उसको न छेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू।
लाला को अपनी ऊँची हवेली से
प्यार है,
माली को अपनी शोख चमेली से
प्यार है।
कुढ़ता है क्यों, गुरु को जो चेली से प्यार है,
तुझको भी तो बहन
की सहेली से प्यार है।
जो तेरे मन में चोर है उसको खदेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू।
ओढ़े था तन पे शाल सुदामा, फटा हुआ,
पहने है कोट कल्लू का मामा फटा हुआ।
मत हँस किसी को देख के जामा फटा हुआ,
तेरा भी तो है, देख, पजामा फटा हुआ।
मत दूसरों के सूट की बखिया उधेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी है, अपनी निबेड़ तू।
रहता है हर
घड़ी जो हसीनों की ताक में,
करता है हाय-हाय, जो उनकी फिराक में।
कहता है लड़कियों को जो लैला, मजाक में,
जिसकी वजह से दम है मुहल्ले
की नाक में।
अपने तो उस सपूत की चमड़ी उधेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू।
तुकबन्दियों पे, यार, न इतना तू नाज कर,
घर में इकट्ठे आज ही ‘म्यूजिक’ के साज कर।
बुद्धू पड़ोसियों का न बिलकुल लिहाज कर,
छत पर तमाम रात तू डट के रियाज कर।
तबला बजाये
बीवी तो सारंगी छेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू।
ढल जाए, क्या गरज तुझे बीबी के रूप से,
मतलब है सिर्फ तुझको तो बच्चों की ‘ट्रू प’ से।
कब तक इन्हें रिझायेगा कद्दू के रूप से,
कैसे इन्हें बचायेगा कड़की की धूप से।
मत भूल, है खजूर का बेसाया पेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू।
बीवी से और तलाक ! मत ऐसा गुनाह कर,
फेरे लिये हैं सात, मत इसको तबाह कर।
कम्मो से तू न खेल, न निब्बो की चाह कर,
धन्नो यही है तेरी, तू
इसी से निबाह कर।
अनपढ़ समझ के इसको न घर से खदेड़ तू,
तुझको पराई क्या पड़ी, अपनी निबेड़ तू।
लेखक-: अल्हड़ बीकानेरी
One of my favorite poem
जवाब देंहटाएंTujhko parayee kya padi..
बनाना आपको अपना हमें माना नहीं आता.
जवाब देंहटाएंकहा किसने के हमको इश्क़ फ़र्माना नहीं आता.
कुछ अच्छाइया भी होगी शायद इस बुरे दिल में,
मगर अच्छाइयो को सामने लाना नहीं आता.
मोहब्बत से कहा तुमने और हम हो चले आशिक़,
मगर तुमसा हमें आशिक़ी जतलाना नहीं आता,
तुम रुठ तो गये, पर मैं कुछ कर नहीं सकता,
क्योंकि तुम्हे रुठना तो आता है, मुझे मनाना नहीं आता.